गणेश जी के चरित्र से मिलने वाली बहुमूल्य शिक्षाएं
भारतीय संस्कृति में गणेश जी को विद्या-बुद्धि का प्रदाता, विघ्न-विनाशक, मंगलकारी, रक्षाकारक, सिद्धिदायक, समृद्धि, शक्ति और सम्मान प्रदायक माना गया है| गणेश जी अपने भक्तों की समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं और उन्हें कष्टों से मुक्त करके सभी प्रकार का वैभव प्रदान करते हैं| इस बारे में शास्त्रों में भी कहा गया है कि विभिन्न देवी-देवता अलग-अलग प्रकार की कामनाओं की पूर्ति करते हैं किन्तु केवल गणेश जी ही ऐसे एक मात्र देव हैं जो सभी प्रकार की इच्छाओं की पूर्ति कर देते हैं| गणेश जी उपासना करने वाले की सभी प्रकार की अभिलाषाओं को तुरंत पूरा करते हैं| देवी या देवताओं की जो विशेषताएं होती हैं, वहीँ उन्हें पूजनीय बनाती हैं| यह विशेषताएं समस्त मनुष्यों के लिए भी प्रेरक होती हैं| अगर मनुष्य इन्हें आत्मसात कर ले तो वह भी महान बन सकता है| आज गणेश जी की पूजा घर-घर में होती है, उन्हें मंगल कार्यों में सबसे पहले आमंत्रित किया जाता है, अवश्य ही इसके कुछ कारण रहे होंगे| गणेश जी प्रथम देव गजमुख प्राप्त होने के पश्चात ही कहलाये| हाथी में ऐसी अनेक विशेषताएं होती हैं जो उसे अन्य प्राणियों से विशेष बना देती हैं| गजमुख होने के कारण श्री गणेश जी का स्वरुप भी हाथी के समान हो गया था| चलिए आपको बताते हैं की किन विशेषताओं के कारण गणेश जी प्रथम पूज्य देव बने| यह विशेषताएं सभी मनुष्यों के लिए भी विचारणीय एवं ग्रहण करने योग्य हैं-
गणेश जी के नेत्र– सबसे पहले हम गणेश जी की आँखों को देखें| हाथी का मुख बहुत बड़ा होता है परंतु उसकी आंखें बहुत छोटी-छोटी होती हैं| अपनी छोटी आँखों से भी हाथी दूर तक देख सकने में सक्षम होता है| छोटी आंखें दूरदृष्टि की परिचायक होती हैं| वर्तमान परिपेक्ष्य में दूरदृष्टि की बहुत अधिक आवश्यकता है| आने वाले समय में क्या समस्या अथवा कष्ट आ सकते हैं, यदि इसके बारे में पहले से जान लिया जाए तो समय रहते इनसे बचाव संभव है| आज के समय में मनुष्य के अन्दर इस विशेषता का होना अत्यंत आवश्यक है|
गणेश जी के कान– गणेश जी के कान काफी बड़े-बड़े हैं| यह इस बात का प्रतीक है कि यदि आप जीवन में प्रमुख पद प्राप्त करना चाहते हैं तो जो केवल काम की बात हो, उस पर ध्यान दें और व्यर्थ की बातों को अनसुना कर दें| बड़े कान सतर्कता के प्रतीक भी हैं| हमें हर एक की बातों को सतर्क होकर ध्यान पूर्वक सुनना चाहिए और सोच समझकर ही किसी की सलाह को जीवन में अपनाना चाहिए|
गणेश जी की सूंड़– गणेश जी की सूंड़ लंबी है| हाथी अपनी सूंड़ की सहायता से ऊँचे-ऊँचे वृक्षों से पत्ते आदि तोड़कर खा लेता है और इसी सूंड़ से वह अपने शत्रुओं को उठाकर दूर पटक देता है| जब सूखा पड़ता है, भोजन की समस्या हो जाती है तब हाथी अपनी लंबी सूंड़ की मदद से वृक्षों की ऊँची डालियाँ तक तोड़कर परिवार का एवं स्वयं का पेट भरता है| गणेश जी की सूंड़ इस बात की प्रतीक है कि व्यक्ति को कठिन समय में भी परिश्रम करके घर-परिवार का पालन-पोषण करने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए| कभी भी समस्याओं तथा शत्रुओं से घिरने पर आत्म समर्पण नहीं करना चाहिए, बल्कि संघर्ष करके इन्हे दूर करना चाहिए|
गणेश जी के चार हाथ– गणेश जी के चार हाथ बताए गए हैं| इनमें से एक हाथ में पाश, दूसरे में शस्त्र, तीसरे में मोदक तथा चौथा हाथ वरमुद्रा में है| इसमें पाश बंधन का प्रतीक है| यह बधन नियम के रूप में देखे जा सकते हैं अर्थात जो व्यक्ति जितने उच्च व प्रमुख पद पर होता है उसे उतना ही नियम व जिम्मेदारी का सख्ती से पालन करना पड़ता है| दूसरे हाथ में जो शस्त्र है वह कठोरता का प्रतीक है| यानी जो नियमों का पालन न करें उसे कठोर दंड दिया जाना चाहिए ताकि व्यवस्था सुचारू रूप से बनी रहे| तीसरे हाथ में मोदक है जो कि पुरस्कार का प्रतीक है| जो व्यक्ति अच्छा कार्य करता है, उसे पुरस्कार देना चाहिए ताकि उसके उत्साह में वृद्धि हो और वह अधिक अच्छा कार्य कर सके| चौथा हाथ वरमुद्रा में ऊपर उठा हुआ है| यह बड़प्पन और सुरक्षा का प्रतीक है कि मेरे रहते तुम्हे कुछ नहीं हो सकता, तुम सभी सुरक्षित हो इसलिए निश्चित रहो|
गणेश जी का उदर(पेट)– गणेश जी का उदर बहुत बड़ा है| इस कारण से उन्हें लम्बोदर भी कहा जाता है| उदर की विशेषता अधिक खाना नही है बल्कि पेट में गए हुए को पचाना है| जिसकी पाचनशक्ति अच्छी होती है उसका शरीर बलिष्ठ रहता है तथा उसे किसी प्रकार के रोग नहीं होते हैं| यहाँ लम्बोदर से तात्पर्य है कि आप सबकी सुनो और उन्हें पचा जाओं अर्थात इधर सुनी और उधर कही वाली स्थिति व्यक्ति के लिए अनेक प्रकार की समस्याओं को जन्म देती है| उसके अनायास ही अनेक मित्र शत्रु बन जाते हैं और उससे दूर भागने लगते हैं| इसलिए गणेश जी का बड़ा उदर बुरी व नकारात्मक बातों को पचाने का प्रतीक है|
गणेश जी एकदंत हैं– भगवान गणेश जी का एक दांत है| इसलिए उन्हें एकदंत भी कहा जाता है| यह एकदंत एकता का प्रतीक है| कहा जाता है कि एकता में बहुत शक्ति होती है| दांत शरीर के समस्त अंगों में सबसे शक्तिशाली भी होता है| इसलिए एकदंत ताकत व बलशालिता का प्रतीक भी है|
गणेश जी का वाहन मूषक– मूषक अर्थात चूहा जिस चीज को देखता है, उसी को कुतर देता है, खराब कर देता है| अन्य जानवरों को जब भूख नहीं होती है तो वे आराम करना पसंद करते हैं किन्तु चूहा कभी आराम नहीं करता| हमेशा इधर-उधर भागता रहता है| अज्ञानी एवं कुतर्क करने वालों की प्रकृति भी ऐसी ही होती है| वे किसी बात को समझने का प्रयास कम करते हैं और यहाँ-वहाँ अधिक भागते हैं तथा व्यर्थ बोलते हैं| जब इन कुतर्क करने वालों के ऊपर बुद्धिमान और शक्तिशाली व्यक्ति आ जाता है तब वे उसके अनुसार काम करने लगते हैं| गणेश जी ने अपने भारी भरकम शरीर के बोझ से अपने वाहन मूषक यानी चूहे को दबा रखा है, इसलिए चूहा उनके अनुसार चलता है और अपनी मनमानी नहीं करता है| यह इस बात का प्रतीक है कि यदि हमारे पास क्षमता, बुद्धि व बल है तो हम भी कुतर्क करने वालों से ठीक प्रकार से काम ले सकते हैं|
गणेश जी का संपूर्ण शरीर– गणेश जी का शरीर विशालकाय है| अगर हम हाथी के संपूर्ण शरीर को देखें तो वह वर्तमान में सबसे ताकतवर तथा विशाल प्राणियों में से एक है| इतने बड़े शरीर का स्वामी होने के बावजूद भी हाथी अधिकांश शांत और अपने आप में ही मस्त रहता है| वह कभी भी किसी पर बेवजह हमला नही करता है| एक प्रकार से हाथी अपनी ताक़त को कभी व्यर्थ में नष्ट नहीं करता है| जब जहाँ जितनी आवश्यकता होती है, उतनी ही उर्जा का व्यय करके शेष उर्जा को बचाकर रखता है| यह इस बात का प्रतीक है कि मनुष्य को भी अपनी उर्जा का संचय करना चाहिए| बिना वजह व्यर्थ में अपनी उर्जा और शक्ति का नाश नहीं करना चाहिए| एक-दूसरे से लड़ाई-झगड़ा करने के स्थान पर प्रेम एवं शांति से रहना चाहिए|